*भगवान सूर्य की उपासना, आस्था का महापर्व छठ पूजा की सभी को सपरिवार मंगलकामनाएँ*
*छठ पर्व भगवान सूर्य की आराधना का पर्व*
*‘छठ अनुष्ठान सादगी और स्वच्छता का प्रतीक’-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज*
*ऋषिकेश, 10 नवम्बर।* परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने देशवासियों को छठ पूजा की शुभकामनायें देते हुये कहा कि छठ पूजा का चार दिवसीय अलौकिक अनुष्ठान हम सभी को प्रकृति से जोड़ता है तथा प्रकृति के संरक्षण-संवर्धन का संदेश देता है। यह पर्व सामाजिक समरसता का प्रतीक है। कहा जाता है कि जिसका ‘उदय’ होता है, उसका ‘अस्त’ होना तय है! लेकिन ‘छठ पर्व’ सिखाता है, जो ‘अस्त’ होता है, उसका ‘उदय’ निश्चित है। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसमें न केवल उगते सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि सूर्यास्त यानी उषा एवं प्रत्यूषा की भी पूजा की जाती है।
छठ एक प्राचीन हिंदू वैदिक त्योहार है जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है। छठ पूजा एक लोक त्योहार है जो चार दिनों तक चलता है। यह कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी से शुरू हो कर सप्तमी को समाप्त होता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि छठ का पावन पर्व सूर्य देवता और षष्ठी देवी को समर्पित चार दिवसीय अनुष्ठानपरक आयाम है जो नहाय-खाय, खरना से शुरू होता है तथा छठ पूजा और सूर्य देव को अघ्र्य देकर अनुष्ठान का समापन किया जाता है। इस पर्व के माध्यम से श्रद्धालु भगवान सूर्य की पहली किरण – उषा और शाम की आखिरी किरण – प्रत्युषा के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। ब्रह्मांड में भगवान सूर्य ही ऊर्जा के प्रथम स्रोत है उनके कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाता है।
छठ का अनुष्ठान हमें जीवन में नियम और निष्ठा तथा श्रद्धा और समर्पण का संदेश देता है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि मगध सम्राट जरासन्ध के पूर्वज रोगग्रस्त हो गये थे जिससे मुक्ति के लिये शाकलद्वीपीय ब्राह्मणों ने सूर्योपासना की थी, तभी से मगध क्षेत्र बिहार में छठ के अवसर पर सूर्योपासना का प्रचलन प्रारम्भ हुआ। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या और च्यवन ऋषि का भी उल्लेख मिलता है। ‘ब्रह्मवैवर्तपुराण’ में छठ पर्व का उल्लेख मिलता है।
छठ पूजा भारतीय सभ्यता और संस्कृति की ऐतिहासिक पहचान है। पर्व हमारी सांस्कृतिक धरोहर है जो जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिग, जल संरक्षण, परम्परागत जल-स्रोतों जैसे तालाब, सरोवर, नदियों आदि जल संस्थानों के संरक्षण और संवर्धन, जल संचयन और ‘वाटरहारवेस्टिंग’ आदि का संदेश देते हैं।