*परमार्थ निकेतन पधारे श्री सुधांशु जी महाराज*
*पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज और सुधांशु जी महाराज की हुई दिव्य भेंट वार्ता*
*पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर प्रबंधन एवं संरक्षण, नदियों, वन्य जीवों और पेड़-पौधों के संरक्षण पर हुई चर्चा*
*गंगा माँ ने खेतों को ही नहीं बल्कि दिलों को भी सींचा-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज*
*प्रकृतिस्थ जीवन की ओर लौटे-श्री सुधांशु जी महाराज*
*ऋषिकेश, 18 नवम्बर।* परमार्थ निकेतन में विश्व जागृति मिशन के प्रमुख सुधांशु जी महाराज पधारे, परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने वेद मंत्रों और शंख ध्वनि से उनका दिव्य स्वागत किया।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज और सुधांशु जी महाराज की दिव्य भेंटवार्ता हुई। इस अवसर पर दोनों महापुरूषों ने समसामयिक विषयों पर चर्चा करते हुये वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण, सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग कम करने, माँ गंगा, यमुना और अन्य नदियों को प्रदूषण मुक्त करने हेतु कथाओं और साधना शिविरोेें के माध्यम से जन जागरूकता अभियान चलाने पर विशद चर्चा की।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि कथा और साधना शिविरों का आयोजन ही परमार्थ कार्यो के लिये किया जाता है। अपने लिये जिये तो क्या जिये इसलिये केवल अपने लिये नहीं अपनों के लिये और उन अपनों में भी पूरे विश्व को समेट लें यही तो जीवन है। गंगा जी सब के लिये बहती हैं नो डिस्क्रिमिनेशन, नो हेज़िटेशन, नो एक्सपेक्टेशन और नो वेकेशन, इस भाव से सदियों से निरंतर प्रवाहित हो रही है। माँ गंगा सब के खेतों को चाहे वह किसी भी धर्म और जाति का हो गंगा सबको सींचती चली जाती हैं। गंगा माँ केवल खेतों को नहीं बल्कि दिलों को भी सींचती है। हमारा जीवन भी ऐसा ही हो, सब की सेवा करें, बिना भेदभाव के करें और करते ही रहें। हमारे भीतर सभी के लिये प्रेम का सागर बहता हो। इस तरह का भाव जब जीवन में बढ़ता हैं तो सच माने न नदियों का जल प्रदूषित होगा न पर्यावरण और न ही जीवन प्रदूषित होगा।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि मानव और पर्यावरण एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हुये हैं। मानव कल्याण और विकास का सीधा सम्बंध पर्यावरण से है। स्वच्छ पर्यावरण के बिना मानव विकास लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता।
विश्व जागृति मिशन के प्रमुख सुधांशु की महाराज ने कहा कि देश में लगातार भूमिगत जल के नीचे जाने से शुद्ध पेय जल संकट देशवासियों के सामने मुंह बाये खड़ा है। भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व भर में भूमिगत जल में हो रही घटोत्तरी और बढ़ते समुद्र चिंता के विषय हैं।
प्रकृति-पर्यावरण से जुड़ी इन समस्याओं पर गौर करना जरूरी है कि यह संकट हम मनुष्यों ने ही पैदा किया है इसलिये इसका समाधान भी हमारे पास ही है। हमने अपनी जीवन शैली में अप्राकृतिक बदलाव किया है उससे ही संकट पैदा हुआ है इससे मुक्ति पाने के लिए हमें पुनः पर्यावरण एवं प्रकृतिस्थ जीवन की ओर लौटना होगा।