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राज्यों के विधानसभा चुनाव

राज्यों के विधानसभा चुनाव

अजय दीक्षित
पिछले दिनों चुनाव आयोग ने हरियाणा और जम्मू कश्मीर में चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है, परन्तु उसने झारखण्ड और महाराष्ट्र के चुनावों की तारीखें नहीं बतलाई। पिछली बार हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव एक साथ हुये थे । चुनाव आयोग पर आरोप है कि वह केन्द्र की सरकार के दबाव में काम करता है । महाराष्ट्र में भाजपा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है । अजित पवार फैन्स (दीवार के किनारे) बैठे हैं । वे शरद पवार के निकट भी बने रहना चाहते हैं । यूं अभी वे शिंदे की सरकार में उप मुख्यमंत्री हैं । अगली बार भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनायेगी । यह बात शिंदे गुट के शिवसेना को पसंद नहीं होगी । राज ठाकरे भी अपनी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के साथ चुनाव में उतरना चाहता है । झारखण्ड में भाजपा की स्थिति कुछ बेहतर है । चम्बई को भाजपा अपने में मिलाना चाहती थी पर चम्बई सोरेन ने अपनी अलग पार्टी बनाने की घोषणा कर दी । उत्तरप्रदेश की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तारीखें भी घोषित नहीं हुई है जबकि राज्य की विधानसभा का कार्यकाल कुछ ज्यादा नहीं बचा है ।

जम्मू कश्मीर नेशनल कान्फ्रेंस व कांग्रेस का गठजोड़ हो रहा है । इस बार केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह कांग्रेस से दस सवाल पूछ रहे हैं कि क्या वह 370 और 35ए को बहाल करेंगे । क्या पाकिस्तान के प्रति उनका क्या रुख है? क्या वह कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने के पक्ष में हैं, आदि आदि ।

परन्तु विपक्ष उनसे पूछ रहा है कि उमर अब्दुल्ला वाजपेयी के काल में विदेश मंत्री थे । विदेश मंत्री को भारत की अखण्डता का नक्शा दुनिया के सामने रखना पड़ता है । स्मृति ईरानी और शाह कांग्रेस से सवाल पूछ रहे हैं तो इण्डिया गठबन्धन भी भाजपा से सवाल पूछ रहा है कि पी.डी.पी. के साथ भाजपा ने कश्मीर में सरकार कैसे बनाई थी । मेहबूबा मुफ्ती की पी.डी.पी. ने भी अपने घोषणा पत्र में पुन: कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिलाया जायेगा । असल में भाजपा से भी कुछ असुविधाजनक सवाल पूछे जा रहे हैं । मेहबूबा के मुख्यमंत्री काल में भाजपा उप मुख्यमंत्री रहीं है । असल में अभी भी कश्मीर में सब कुछ ठीक नहीं है । हर दिन पाकिस्तान से आतंकवादी घुसपैठ करते हैं । बहुत से सेना के अधिकारी और सोल्जर शहीद हो चुके हैं ।

मोहन भागवत ने पिछले दिनों कहा था कि विपक्ष को अपना विरोधी न मानकर उसे प्रतिपक्ष कहना चाहिए । उन्होंने यह भी कहा था कि काम तो करो पर यह अभिमान मत पालो कि मैंने किया था । इधर लग रहा है कि भाजपा को कई मामलों में अपने पैर खींचने पड़ रहे हैं । लैटरल इंट्री वाला विज्ञापन वापिस लेना पड़ा । कई विधेयकों को वापस लेना पड़ता है या होल्ड पर डाल दिया जाता है । मुस्लिम बिल को पार्लियामेंट कमेटी को भेजना पड़ा है । कश्मीर के मसले पर यदि भाजपा कांग्रेस को घेरती है तो विपक्ष भाजपा और पी.डी.पी. के साथ उसके सम्बन्धों को उजागर करेगी । यूं तो सभी टी.वी. चैनल प्रो सरकार हैं यानि प्रो भाजपा । पहले एन.डी.टी.वी. पर रवीश कुमार का प्रोग्राम आता था । अब एन.डी.टी.वी. अडानी ग्रुप के पास है, अत: रातोंरात रवीश कुमार की छुट्टी कर दी गई । लोग कहते हैं कि अमित शाह ने मुफ्ती मेहबूबा को फूलों का गुलदस्ता भेंट किया था । यूं प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अमित शाह किसी को फूलों का गुलदस्ता भेंट नहीं करते । वे तो प्राप्त करते हैं ।

असल में वर्तमान की घटना भविष्य में क्या रूप लेगी यह किसी को नहीं मालूम । कहते हैं कि भविष्य पुराण में भविष्य का सभी कुछ वर्णित है । पर यह शायद राजनीति पर लागू नहीं होता । चुनाव में जीत हार का असर देश में जो तरक्की हो रही है, उसे पर नहीं पडऩा चाहिए । इसके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को कुछ कदम बढ़ाकर पास-पास आना होगा । यही भारत का भविष्य है ।

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