विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर मशहूर लेखिका सुनीता चौहान द्वारा लिखी पंक्तियां-
प्रकृति के रंग अध्यात्म के संग
यदि ये सच है कि हमारे विचार ही हमारी दुनिया बनाते है..तो हम अपनी दुनिया बारीकी से देख सकते है..और महसूस कर सकते है.हमारे विचारो ने कैसे कैसे बदलाव ला दिए,जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं कि थी|
रंगीनियों, चकाचोंध के तले सादगी के दीपक बुझते जा रहे है….
हम पहले से ज्यादा सयाने हो गए है,इस विकट दौर में जब जिंदगी थमी रुकी सी नजर आ रही है,सांसो को बचाने के लिए जद्दोजेहद चल रही है..जीवन रहस्य को अपने नजरिये से सुलझाने कि कोशिश कर रहे है..यूँ तो इस क्रूर दौर ने हमसे
बहुत कुछ छीन लिया है,किन्तु साथ ही सचेत भी किया है..जीवन को और गहराई से समझने की जरुरत है.वैसे तो बहुत सी बाते हमारे भीतर रच बस गई है..अमूमन ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने से हवा शुद्ध मिलेगी..कृत्रिम ऑक्सीजन की जरुरत नहीं पड़ेगी |
सृष्टि में हर तरफ जैव विविधता के रंग बिखरे पड़े है उसको सहेजने से जिंदगी में सदा रंगो की भरमार रहगी..जिंदगी बेरंग नहीं होगी.. अब ये हमारे संकल्पो पर निर्भर करेगा कि हम कहाँ तक ये सब सहेज पाते है।
मिट्टी,पानी ,पहाड़ ,जंगल..धरती पर जीवित अजीवित जो कुछ भी है..वनस्पतियां,पादप,घास के मैदान धरती की सतह हो या समुंद्रतल.हर जगह पारिस्थितिक तंत्र हमसे किसी न किसी रूप में एक दूसरे से जुड़े है।
छोटे से जीव से लेकर विशालकाय जानवर,सुन्दर असुंदर सब कुछ जीवन को बेहतर बनाने में अपनी अहम् भमिका निभा रहा है..तितलियों के रंग हो या फूलों की खुशबू,मंद मंद बहती
बयार हो या कल कल करती नदियाँ झरनों से उपजा संगीत हो या आसमां में बिखरते इंद्रधनुषी रंग..सब जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
वक़्त के इस दौर में जीवन की क्षणभंगुरता को हमने न सिर्फ समझा,महसूस किया बल्कि पूरी शिद्दत से जिया भी हम मन ही मन खुद में सुधार,बदलाव का संकल्प भी कर बैठे..जैसे शैतान.चंचल बच्चे को मालूम होता है वह जो भी कुछ कर रहा है उसमें कहीं न कहीं उसका नुकसान होगा पर वो खुद को संयम में नहीं रख सकता..ठीक वैसे ही हम भी बहुत कुछ अच्छा करना चाहते है पर मन तो वश में ही नहीं है| हमें अपना दायरा ही समझ नहीं आ रहा,हम भ्रमित है..ऐसे में जीवन को अधात्म से जोडकर हम बहुत कुछ सीख समझ सकते है और जीवन की एक ऐसी दिशा चुन सकते है..जिसमें वसुधैवकुटुम्बकम् की भावना समाहित हो।
अध्यात्म शब्द सुनते ही..इसको हम एक कठिन विषय की तरह देखने लगते है..जबकि अगर थोड़ा चिंतन मनन करे तो अध्यात्म जीवन को सरल बनाता है.हमारी सोच को विस्तार मिलता है।
जिस ख़ुशी,आनंद के लिए हम जाने क्या क्या करते..और ढूढ़ने पर भी नहीं मिल पाती बाहर सब कुछ पाकर भी भीतर कुछअधूरा,रीतापन रहता है..ये हमें खुद से जोड़ता है पूर्णता देता है|..अध्यात्म यानि सही सोचने का तरीका.खुद को बेहतर बनाने का रास्ता..
जब हमारे भीतर का पर्यावरण निर्मल,पावन होगा तभी हम बाहर के पर्यावरण को भी निश्चित तौर पर हरा भरा,स्वच्छ रख सकेगें..भावी पीढ़ियों को सुन्दर स्वस्थ जीवन के लिए बेशकीमती उपहार दे सकेंगे| तो क्यों न अध्यात्म की नज़र से प्रकृति को देखे..और पर्यावरण के प्रति सजग ईमानदार रहकर अपने कर्तव्य का निर्वाह करे।
पर्यावरणवरण दिवस की हरी भरी शुभकामनाएँ
सुनीता चौहान