विश्व पर्यावरण दिवस🌱 साहित्यकार सुनीता चौहान की कलम से….
प्रकृति की मंशा सदैव मानव हित
धरती,समुद्र,पहाड़,हरियाली,गाॅव,शहर,प्रेम,रिश्ते,पानी,
जंगल,नदियाॅ,झरने हर चीज का स्वरुप बदल रहा है,और सबसे ज्यादा गर कुछ बदला है तो वो है हमारा मन।
हवा,पानी,अन्न,माटी,मौसम,सब कुछ बदल गया है।हम ये बदलाव साफ तौर पर नही देख पा रहे है।नदियाॅ
उफान पर है,कुछ कहना चाह रही है,समुद्र की उथल पुथल में अनकहा हाहाकार छिपा है,माटी अपना उपजाऊपन खोने पर मौन रुदन कर रही है।झरनों की सिकुड़ती जल धारा करुण आह उपज रही है।पंछियो का कलरव गहन,अव्यक्त पीड़ा सुना रहा है।धरती का अद्भूत,अनुपम स्वरुप कौन मलिन कर रहा है? जबाव तलाशने के लिए उंगुली एक दूजे पर उठती है,ना मालूम ये उंगुली अपनी तरफ कब उठेगी।जब उठेगी तब धरती का स्वरुप पहले सा पवित्र,निमॅल हो जायेगा,जिसमें सब कुछ साफ झलकने लगेगा।
सृष्टि में हर तरफ जैव विविधता के रंग बिखरे पड़े है उसको सहेजने से जिंदगी में सदा रंगो की भरमार रहगी..जिंदगी बेरंग नहीं होगी.. अब ये हमारे संकल्पो पर निर्भर करेगा कि हम कहाँ तक ये सब सहेज पाते है।
धरा पर जीवित अजीवित जो कुछ भी है..वनस्पतियां,पादप,घास के मैदान धरती की सतह हो या समुंद्रतल.हर जगह पारिस्थितिक तंत्र हमसे किसी न किसी रूप में एक दूसरे से जुड़े है।
छोटे से जीव से लेकर विशालकाय जानवर,सुन्दर असुंदर सब कुछ जीवन को बेहतर बनाने में अपनी अहम् भमिका निभा रहा है..तितलियों के रंग हो या फूलों की खुशबू,मंद मंद बहती
बयार हो या कल कल करती नदियाँ झरनों से उपजा संगीत हो या आसमां में बिखरते इंद्रधनुषी रंग..सब जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
🌱🌱पर्यावरणवरण दिवस की हरी भरी शुभकामनाएँ 🌱🌱
सुनीता चौहान